स्वप्निल श्रीवास्तव का आलेख 'पुरबिहे कवि की कविताई'।
कथ्य और भाषा के स्तर पर प्रयोग करने वाले कवियों में केदारनाथ सिंह का अपना अलग स्थान है। वे लोक और लोक जीवन से जुड़े हुए कवि हैं। इसीलिए मिट्टी की गंध सहज ही उनके यहां मिल जाती है। वे खुद को पुरबिहे कहने में किसी भी किस्म के संकोच का अनुभव नहीं करते। अपनी मातृ भाषा भोजपुरी को वे जीते थे। उनकी कविताएं इसकी गवाह हैं। आज केदार जी की पुण्य तिथि पर उन्हें नमन करते हुए पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं स्वप्निल श्रीवास्तव का आलेख ' पुरबिहे कवि की कविताई'। (केदारनाथ सिंह हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि हैं, उनकी संवेदना व्यापक है इसलिए आलोचकों ने अपनी अपनी दृष्टि के अनुसार उनका मूल्यांकन किया है। मेरा विचार यह है कि वे मूल रूप से लोकसंवेदना के कवि हैं। इस आधार पर उनके मूल्यांकन की कोशिश की गयी है। 19 मार्च उनकी पुण्यतिथि है, उन्हें याद करते हुए यह लेख प्रस्तुत है। - लेखक) पुरबिहे कवि की कविताई स्वप्निल श्रीवास्तव हिंदी में दो तरह की संवेदना के कवि हैं। पहले वे जो नगर-क्षेत्र में रहते हुये नागर जीवन के बीच की हलचल, वहां के नागरिकों के सुख–दुख को अपने काव्य का वि