अस्मुरारी नंदन मिश्र

(अस्मुरारी नंदन मिश्र)


'वाचन-पुनर्वाचनके अंतर्गत  इस बार  के हमारे कवि है अस्मुरारी नंदन मिश्र। इनकी कविताओं पर टिप्पणी की है हिन्दी और मैथिली के चर्चित युवा कवि अरुणाभ सौरभ ने। अभी हाल ही में अरुणाभ सौरभ को मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है। पहली बार परिवार की तरफ से अरुणाभ को ढेर सारी बधाईयाँ।   

अस्मुरारी की शिक्षा अव्यवस्थित तरीके से बी.. , बी. एड. तक हो पायी..
नौकरी के फेर में एम. . की पढाई को छोड़ कर केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक हो गए.
अभी इन दिनों पारादीप पोर्ट (ओडिशा) में कार्यरत हैं। 

इनकी कविताये परिकथा, और साखी जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं, संवदिया के आगामी युवा कविता केन्द्रित अंक में भी कविता प्रकाश्य ...
एक पुस्तक समीक्षा भी साखी में प्रकाशित
..


अस्मुरारी की कविताओं से गुजरना एक मौसम, राग, वायुमंडल के मिजाज़ को टोहना है. जहाँ सहजता के साथ जीवनानुभव है जिसमे लय, सुर ताल है, तो खेल भी, गति है तो विराम भी, उम्मीद है तो संघर्ष भी..कम सुखद नहीं है की यह युवा कवि जीवन के हर खानों पर कविता बुनता है, जिसमे व्यायाम है, खेलकूद है, रचनाओं का पुनर्पाठ है, और गिनती के बाहर भी न जाने कितनी विखरी हुई संवेदना है.. व्यवस्थित जीवन की जगह यहाँ अनगढ़पन का सौंदर्य पूरी चेतना में शामिल है. इसीलिए अस्मुरारी उन बहुत कम बचे हुए लोगों को अपनी कविता में शामिल करते हैं, जिनके पास दूब भर हरापन बच गया है. यानी यथार्थ के स्तर पर जीवटता और उम्मीद की आखिरी किरण तक जीवन जीने वाले लोगों के कवि होने की पूरी सम्भावना को अपनी कविता में व्यक्त करते हैं.. इसीलिए प्रेमचंद की पूस की रात कहानी का काव्यात्मक पुनर्पाठ अस्मुरारी करते हैं. इसीलिए शीर्षासन जैसे कठिन व्यायाम को कविताई का स्वरुप और गुणधर्म प्रदान करते हैं. इसीलिए बास्केटबाल जैसा खेल भी कविता का आकार ले लेता है जिसे कवि स्वयं अपरचित होने के बावजूद बच्चों की खुशी और तल्लीनता में रम जाता है. पहाड़ को यार की तरह गले लगाने को उद्धत होना मनुष्य और प्रकृति के बीच सार्थक अंतर्संबंध और पारिस्थितिक अनुकूलनता का विस्तार नहीं तो और क्या है? यह वैज्ञानिक दर्शन की क्लासिकल परिणति है जिसकी फैंटेसी में हर तरह से जीवन के सौंदर्यबोध में डूब जाना सहज आकांक्षा बन जाती है.. भावों की उतप्त गहराइयों में उतरने की यह कोई अतिरिक्त चेष्टा नहीं है, बल्कि जटिल से जटिलतम परिस्थितियों में अपनी पक्षधरता तय कर लेना कवि की प्राथमिकता है.. जहाँ कवितायें भावुकता की रोमानी कल्पनाओं से नही, यथार्थ की सहज चेतना से गढ़ी जाती है. इसीलिए इस यथार्थ में शिल्प का अनगढ़पन मिलना स्वाभाविक भी है और क्रिया प्रसूत भी.
  
कुल मिला कर अस्मुरारी युवा पीढ़ी की उस सकारात्मक सोच और  गहरी समसामयिक पैठ को अपनी पैनी दृष्टि के साथ कविता में लाते हैं जिनमें गंभीर रचनात्मकता की पूरी समझ है, जीवन-जगत के प्रति जिनमे कुछ नया करने की ललक है. जीवन की ऐसी बहुलार्थता और समकालीन सरोकरों से पूर्णतया अवगत इस कवि की कविता एक अनूठा राग है जिसे स्थितियों द्वारा गाया जा रहा है. विपरीत समय से दो-दो हाथ करने की इस रचनात्मक हिम्मत का स्वागत अवश्य होना चाहिए.

कवितायें जो आपके अंतर्मन को झकझोर दे, एक क्षण के लिए आपको मौन कर दे और आप अचानक संवेदन तंतु के तीव्रतर होने की स्थिति में आ जाएँ ऐसी नायाब संवेदनात्मकता का धनी है हमारा यह युवा कवि, इसी विश्वास पर प्रस्तुत है 'पहली बार' के पाठकों के लिए अस्मुरारी नंदन मिश्र की पांच कवितायें.
-अरुणाभ सौरभ


अस्मुरारी नंदन मिश्र की पांच कवितायें


1
शीर्षासन 
---------
 
कुछ देर शीर्षासन में रह 
उठते ही 
वे लेते हैं गहरी साँसें
फेफड़ों में भर लेना चाहते हैं 
वायुमंडल भर हवा 
घोषित करते हैं इसे शीर्ष व्यायाम
मस्तक थोडा और तन जाता है
मानो उठा रखी थी पूरी पृथ्वी

ब्रहम मुहूर्त के कुछ पल का शीर्षासन 
सर को आसमान में पहुंचा देता है

इधर न जाने कैसी हवा चली है
कि पाँव भी लेने लगे हैं साँसे
और एकाएक कर दिया है घोषित उन्होंने भी 
शीर्षासन को शीर्ष व्यायाम 
चाहते हैं --सर भी ले धरती का पूरा स्पर्श 
धरती को थामने का घमंड नहीं 
सीखें धरती पर टिकने की कला 
तब तक वे भी लहराना चाहते हैं आसमानों में
खेलना चाहते हैं अंतरिक्ष में फूटबाल 

सिरों की दुनिया में खासी बेचैनी है आजकल 
कोसा जा रहा है शीर्षासन के जन्मदाता को
घोषित करवाना चाहते हैं इसे गैर जरुरी ही नहीं
गैर कानूनी भी

लेकिन पैर हैं कि
जूते की नहीं 
पगड़ी की मांग कर चुके हैं...



2
मेरे यार पहाड़
------------
 
मेरे यार पहाड़
मेरे पूर्वजों ने तुमसे ही पाया था जीवन का संगीत
तुम्हारी गोद में बसाया था छोटा सा गाँव
और बेहद भावुक होकर कहा था--
अरण्यडीह
नीम, बेल बैर.महुआ.......
कितने- कितने पेड़ थे तुम्हारे पास
कई जड़ी-बूटियां
जिसके सहारे वैद्य कहलाते थे 
बाबा

अब दूब भर हरापन नहीं रहा तुम में
मैं सुनता हूँ निर्जीव साँसों का खट-खट
जब भी पत्थर टूटता है.. 

 
3
बास्केटबाल -खिलाड़ी
----------------------

यूँ नहीं जानता 
बास्केट बाल का क ख ग भी
फिर भी हूँ बास्केटबाल की टीम के साथ

ये जो खेलने आये हैं
अपनी धुन, लय, रंग में दर्शनीय हैं
साथ रहते हुए जाना है
गलती कर बैठते हों भले
गलत नहीं हैं ये
बुरे कामों में फंस कर भी बुरे नहीं
बदमाशियों के बाद भी बदमाश नहीं 
ये अपने खेल में बस खिलाड़ी हैं

अपने भरपूर कौशलों से 
बास्केटबाल पर पकड़ बनाए कितने आकर्षक हैं ये
अपनी चपलता और गत्यात्मक लय से
छल्ले में गेंद को पहुंचाते हुए कितने सुकून देते हैं

खुद-ब-खुद निकलती है असीसें
गेंद की तरह ही रहे पकड़ में इनके भविष्य
छल्ले भर सुरंग से निकलना कभी कठिन न हो 
इनके लिए

आमीन!!


4
पूस की उस एक रात के बाद
----------------------------

सारे ऊख के नष्ट होने के दुःख पर 
रात-रात भर 
ठण्ड सहने की विवशता के खात्मे का संतोष
कहाँ मना पाया हल्कू
पूस की उस एक रात के बाद
पूरे परिवार के साथ 
एक कम्बल में खींचतान करता हुआ रात भर
सोचता रहा
ऊख एक बहाना तो था
ठण्ड सहने का


5
गिनती के बाहर
---------------
उनकी गिनती तीन तक जाती थी 
और मैं  पहले दूसरे  तीसरे में नहीं था

मेरे पहुँचने  के पूर्व ही गिर चुकी थी वह रस्सी
जिसे सीने से धकेल उछल पड़ा था प्रथम
ठीक पीछे दूसरे और तीसरे भी थे
सभी के चहरे पर उल्लास था
सभी खुश थे

मैंने बस पार की अंतिम लकीर
लेकिन इसने भी अर्थ खो दिए थे तब तक
मेरी मांसपेशियां सहलाने वाला कोई नहीं था
किसी ने भी नहीं दी सांत्वना -
कि कुछ और तेज़ दौड़ना था
किसी ने उत्साह नही दिया
कि अभ्यास जारी रखो एक दिन तुम भी फर्स्ट होगे

तालियाँ जरुर कुछ मेरे लिए भी बजी होंगी
लेकिन मुझे नहीं पता
समय के किस बिंदु के बाद वे शिथिल हो गयी होंगी
या कार  लिया हो दल-बदल

हम जो पहले तीन में कहीं नहीं थे
बिलकुल अपनी संवेदना, इच्छा और विश्वास पर 
अकेले खड़े रह गए थे वहां 
बचे रहने की तरह थे हम
और सारी भीड़ जश्न में डूब चुकी थी
क्योंकि रहना ही था किसी न किसी को
प्रथम
द्वितीय 
तृतीय

यूँ हम भी कोई देह चोर नहीं थे
नहीं दिखाई थी थोड़ी भी उदासीनता
हमने भी पूरी ताकत लगा दी थी
झोंक ही दिया था खुद को
लेकिन अब हमारे लिए कुछ नहीं  था वहां

अब हमें आगे जाना  था 
अपनी ही संवेदना इच्छा और विश्वास के सहारे
हमें कोई नहीं जानता था
सारी दुनिया पहले दूसरे और तीसरे के जश्न में साथ थी


सम्पर्क-
अस्मुरारी नंदन मिश्र
केंद्रीय विद्यालय पारादीप पोर्ट
जगत सिंह पुर
ओडिशा
७५४१४२
स्थाई पता-
अस्मुरारी नंदन मिश्र
ग्राम-- अरण्यडीह
जिला-- नवादा
बिहार


मो.नं.-- 09692934211

अरुणाभ सौरभ हिन्दी और मैथिली के चर्चित युवा कवि हैं। अभी हाल ही में अरुणाभ को उनके मैथिली कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार दिया गया है।
मोबाईल-
09957833171 

टिप्पणियाँ

  1. युवा कविता का यह विस्तार जब भूगोल से आगे कथ्य तक पहुँचता है , कुछ नया और बेहतर सामने आता है |जैसे की अस्मुरारी की ये कवितायेँ | इनमे आये विषय तो नए हैं ही , उन्हें देखने का अंदाज भी नया है | शीर्षासन और गिनती के बाहर कवितायें मुझे बहुत पसंद आयीं | बाकि भी ठीक हैं | बधाई उन्हें | और हाँ ...जिस व्यवस्थित और सारगर्भित तरीके से अरुणाभ ने लिखा है , उसके लिए वे भी बधाई के पात्र हैं |

    जवाब देंहटाएं
  2. अस्मुरारी भाई संभावनाओं से भरे कवि हैं . उनके पास अपने आस-पास को कविता में बदलने का कौशल है . साथ ही उनकी नजर गिनती से बाहर रह गए लोगों पर है जिनके जीवन से पूस के रात की ठण्ड कभी ख़त्म नहीं होती .अरुणाभ ने उनकी कविता की ताकत को सही रूप में रेखांकित किया है . दोनों युवाओं को बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही खूबसूरत कवितायें हैं. अस्मुरारी भाई को पहले से पढता रहा हूँ और इन कविताओं को पढने के बाद पिछली बार से कथ्य, भाषा और ट्रीटमेंट सभी में एक बहुत लम्बा सफ़र दीखता है एक लम्बा सफ़र दिखता है. बहुत तेज़ी से खुद में नयापन प्राप्त करते रहने वाले कवि को बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  4. Ookh ek bahana to tha thand sahane ka. Ati samvedna. Bandhu shubhkaamnain! - kamal jeet choudhary

    जवाब देंहटाएं
  5. कवि अरुणाभ सौरभ ने सठिक टिप्पणी की है इन कवितायों पर ...सभी कविताएँ गूंजती है दिमाग में . सरल भाषा में लिखी गई गहरी कविताएँ हैं सभी . बधाई .

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'।

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'