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साझा संस्कृति संगम में स्वीकृत इलाहाबाद घोषणा

इलाहाबाद में विगत 14-15 फरवरी 2014 को 'साझा सांस्कृतिक संगम' का आयोजन हुआ. 'जनवादी लेखक संघ' के इस आयोजन में स्थानीय स्तर पर 'जन संस्कृति मंच' और 'प्रगतिशील लेखक संघ' भी भागीदार थे. इस संगम में देश भर से लगभग 250 लेखक शामिल हुए. कार्यक्रम के दूसरे दिन 15 फरवरी को 'जनवादी लेखक संघ' के आठवें राष्ट्रीय अधिवेशन में 'इलाहाबाद घोषणा' का प्रस्ताव रखा गया, जिसे कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया गया. आज हमारा देश फासीवाद के खतरे को शिद्दत से महसूस कर रहा है. ऐसी परिस्थिति में यह घोषणा ऐतिहासिक महत्व की है, जिसके आशय दूरगामी हैं. इस प्रस्ताव से देश के लेखक समुदाय की चिंताओं के बारे में सहज ही जाना जा सकता है. तो आईये पढ़ते हैं यह 'इलाहाबाद प्रस्ताव' जिसे  हमें उपलब्ध कराया है हमारे युवा आलोचक मित्र संजीव कुमार ने. साझा संस्कृति संगम में स्वीकृत इलाहाबाद घोषणा भारतीय समाज इस समय फ़ासीवाद के मुहाने पर खड़ा है। सच तो यह है कि देश के अनेक हिस्सों में लोग अघोषित फ़ासीवाद की परिस्थिति में ही सांस ले रहे हैं। यह ख़तरा काफ़ी समय से मंड