कवि का गाँव

'पहली बार ब्लॉग' पर हम एक नया कॉलम 'कवि का गाँव' शुरू कर रहे हैं इसके अंतर्गत हम कवि के गाँव के बारे में जानेंगे। कवि के गाँव की भौगोलिक स्थिति, गाँव का परिवेश, गाँव के लोग, गाँव की प्रकृति, तीज-त्यौहार आदि के साथ-साथ हम सांस्कृतिक और रचनात्मक प्रवृत्तियों के बारे में भी जानने का यत्न करेंगे। यदि आज भी आपका जुड़ाव गाँव से है तो आप इस कालम के अंतर्गत अपनी बातें और कुछ फोटोग्राफ भेज सकते हैं. इस कालम के पहले खंड में हम प्रस्तुत कर रहे हैं युवा कवि नित्यानन्द गायेन के गाँव के बारे में जो अभी हाल ही में अपने गाँव गए थे उन्होंने हमारे अनुरोध पर ये वृत्तांत और फोटोग्राफ्स उपलब्ध कराये।          

नित्यानन्द गायेन

कवि का गाँव

मेरा गाँव ‘शिखोरबाली’ पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिण चौबीस परगना जिले में बारुईपुर थाना के अंतर्गत आता है। यह गाँव जनसँख्या और क्षेत्रफल में भी बहुत बड़ा है। बारुईपुर और उसके आस-पास के क्षेत्र में  मैं हर तहर के फलों का वृक्ष हैं। किन्तु बारुईपुर अपने पियारा (अमरुद) के लिए पूरे बंगाल में प्रसिद्ध है। शिखोरबाली की जनसँख्या लगभग बीस हजार है, यहाँ लगभग पांच हजार  मतदाता हैं। यह गाँव अपने फलों और हरियाली के लिए सबको आकर्षित करता है। अनेक टीवी सीरियल और फिल्मों की शूटिंग यहाँ होती है। प्रसिद्ध बांछा रामेर बागन जो कि एक पिकनिक स्थल भी इसी गाँव में है।

यहाँ के ८० प्रतिशत लोग किसान हैं। यहाँ किसान अमरुद, कटहल, केला, आम, जामरूल की खेती करते हैं। जिनके पास अपना खेत नही है वे किसान लीज पर खेत लेकर अपना गुजारा करते हैं। इस गाँव में पाल पाड़ा, कोल्हू पाड़ा, नस्कर पाड़ा, मंडल पाड़ा, गानी पाड़ा, नापित पाड़ा, घोष पाड़ा, उकील पाड़ा  हैं।

मेरे गाँव में सामाजिक स्तर पर महिलाएं बहुत सशक्त हैं, चाहे खेती हो या नौकरी सब में अव्वल हैं। हाँ वे बुराइयां भी हैं जो भारत के हर गाँव में होती हैं जैसे प्रेम और ईर्ष्या। किन्तु यहाँ सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। छोटी –छोटी लड़कियां सुबह –सुबह जब पैडल तक ठीक से पैर न पहुँचने पर भी साईकल चला कर स्कूल जाती हैं तो देखते ही बनता है। हर घर के चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। तालाब है। शंख और कांसे की आवाजें हैं क्लब है जहाँ बेरोजगार युवा अड्डा मारते हैं, तास, कैरम, कबड्डी, फ़ुटबाल खेलते हैं। अँधेरा घिरने पर सियार संगीत सुनने को मिलता है। सुबह पंछियों का मधुर गान, किसान का मोठ देखने को मिलता है। हाँ मिटटी के घरों की जगह अब पक्के मकानों ने ले लिया है। फिर भी मिट्टी के अनेक घर अब भी बचे हैं।


आप यहाँ बहुत आसानी से पहुँच सकते हैं। यह गाँव रेल से जुड़ा हुआ है। आप सियालदह स्टेशन के साऊथ सेक्शन से बारुईपुर लोकल, लक्ष्मीकांतपुर, नामखाना या काकदीप लोकल पकड़ कर 'शासन रोड स्टेशन' पर उतर जाइए और स्टेशन के बाहर से शिखोरबाली जाने वाली शेयर ऑटो में केवल आठ रुपए भाड़ा दे कर बैठ जाइये और फिर पहुँच जाइए .......। हाँ मेरे गाँव में भी पालीथीन का आतंक अब फैलने लगा है, इसलिए कृपया प्लास्टिक अपने साथ न ले आयें ..........

मेरे गाँव शिखोरबाली गाँव में आपका स्वागत है ...


आपका 
नित्यानंद गायेन


कवि नित्यानन्द गायेन के गाँव के कुछ दृश्य।




























सम्पर्क

मोबाईल- 09030895116

टिप्पणियाँ

  1. बढ़िया परिचय. बहुत रोमानी भाव से गाँव को याद किया है कवि नित्यानंद गायेन ने..
    बढ़िया प्रस्तुतिकरण. अच्छी शुरुआत..

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  2. .........गाँव का तिनका-तिनका 'इनका'। अब समझ सकता हूँ, कि आपकी कविता में कहाँ की माटी-पानी है ....

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  3. बिल्कुल मेरे गाँव जैसा... :)

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (29-03-2014) को "कोई तो" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1566 "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. मेरे पिताजी भी पहले गाँव में रहत थे, फिर वो पास के नगर में आ गए, दादी चाचा के पास रही, वहाँ खपरे बाले कच्चे कच्चे से घर थे .....वहाँ न पोटी करने खेत में जाना पड़ता था, इसी लिए हम कभी-कभी जाते थे.....

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  6. आप सभी के प्रति मैं दिल से आभार प्रकट करता हूँ . मैं चाहता हूँ कि आप सभी कभी मेरे गाँव आयें और देखें . मेरे गाँव के बारे में इस पोस्ट को आप सभी तक संतोष चतुर्वेदी जी ने बहुत खुबसूरत अंदाज में यहाँ प्रस्तुत किया . जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ . मैंने यहाँ अपने गाँव के बारे में वही लिखा जो मैंने देखा , महसूस किया है . एक कवि के नाते , एक व्यक्ति के नाते .

    -नित्यानन्द गायेन

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  7. आप सब लोग कितने भाग्यशाली है कि गाँव आते जाते रहते है। गाँवो मे ही असली जीवन धड़कता है। दोनो लेखको को बधाई। मनीषा जैन

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