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पल्लव की किताब 'कहानी का लोकतन्त्र' पर रेणु व्यास की समीक्षा

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आमतौर पर हिन्दी कहानी के क्षेत्र में आलोचना की स्थिति बेहतर नहीं रही है । यह सुखद है कि इन दिनों कुछ युवा आलोचक इस क्षेत्र में तन्मयता से अपना काम कर रहे हैं। इन युवा आलोचकों में पल्लव का नाम महत्वपूर्ण है । कहानी आलोचना पर पल्लव की एक किताब हाल ही में प्रकाशित हुई है- ‘कहानी का लोकतन्त्र’ नाम से । इस किताब की एक समीक्षा पहली बार के लिखा है रेणु व्यास ने। तो आइये पढ़ते हैं यह समीक्षा।             ‘ कहानी का लोकतंत्र’ रचती आलोचकीय दृष्टि रेणु व्यास                                                                                            वर्तमान युग की प्रतिनिधि साहित्यिक विधा निर्विवाद रूप से कहानी है। आज की अधिकांश साहित्यिक पत्रिकाओं के केन्द्र में कहानी है। कहानीकारों की संख्या तो किसी भी संभव अनुमान से भी कहीं ज़्यादा है। फिर भी कहानी की आलोचना पर नई पुस्तक आना अपने आप में एक बड़ी घटना है। काव्य और नाटक की आलोचना की हमारे यहाँ समृद्ध परम्परा रही है। किंतु ‘ काव्य’ को साहित्य का पर्याय मानने वाली भारतीय परंपरा से हमें कथा-विधा की आलोचना के मानदण्ड प्राप्त नही

अमृत सागर की कविताएँ

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अमृत सागर परिचय , तदभव , सोच-विचार , आरोह-अवरोह , दैनिक जागरण , नेशनल दुनिया आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित , पुस्तक एवं फिल्म समीक्षाएं भी लगातार प्रकाशन के क्रम में पूर्वांचल विश्वविद्यालय , बीएचयू व जामिया मिल्लिया इस्लामिया से शिक्षा व लगभग तीन वर्षों पत्रकारिता में सक्रियता , फ़िलहाल दिल्ली में रहते हुए एक राष्ट्रीय दैनिक में सबएडिटर के पोस्ट पर कार्यरत   हर व्यक्ति मूलतः अपने में एक निर्वासन लिए रहता है. आज की जो यह दुनिया है वह निर्वासितों की ही तो दुनिया है. निर्वासन अपने पीछे हमेशा गहन स्मृतियाँ लिए रहता है. हम लाख कोशिशें करें उन स्मृतियों से हम अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते. अमृत सागर ऐसे ही युवा कवि हैं जिन्होंने निर्वासन की पीड़ा को महसूस करते हुए बेहतरीन कविताएँ रची हैं. निर्वासन, प्रेम, फिलिस्तीन और नदी जैसी कविताएँ इसका उदाहरण हैं. युवा कवि रविशंकर उपाध्याय, जिनका हाल ही में असामयिक निधन हो गया, के उपर लिखी गयी कविता भी इसी क्रम में है जो हमारे किसी अपने से इस तरह निर्वासित होने को ले कर लिखी गयी है. अमृत की कविताएँ पढ़ते हुए लुप्तप्राय होती जा