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मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कैलाश झा किंकर की गज़लें

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  कैलाश झा किंकर परिचय कैलाश झा किंकर जन्मः 12 जनवरी 1962 शिक्षाः एम. ए., एल-एल. बी. प्रकाशित पुस्तकों में संदेश, दरकती जमीऩ, हम नदी की धार में, देख कर हैरान हैं सब, जिन्दगी के रंग हैं कई प्रमुख हैं। 200 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में गजलें प्रकाशित। कई संस्थाओं से सम्मानित। सम्प्रतिः शिक्षण । दुष्यंत कुमार ने पहली बार हिन्दी ग़ज़ल को एक अलग धार और अलहदा जमीन प्रदान किया । दुष्यंत कुमार की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले ग़ज़लकारों में अदम गोंडवी का नाम सहज ही याद आता है । इसी परम्परा में एक अन्य गज़लकार कैलाश झा किंकर भी हैं । जीवन के साथ-साथ समय और समाज की विसंगतियों को कैलाश झा किंकर जिस तरह अपनी ग़ज़लों का विषय बनाते हैं वह हमें सोचने-विचारने के लिए विवश करता है । कैलाश जी की गज़लें आप 'पहली बार' पर पहले भी पढ़ चुके हैं । आइए एक बार फिर रु-ब-रु होते हैं कैलाश जी की कुछ नयी ग़ज़लों से ।       कैलाश झा किंकर की गजलें   1 साथ सच का मिला है बडी बात है झूठ है हर तरफ हर तरफ घात है । है दलाली का धंधा कदम -दर -कदम धन कमाना भी अब तो करमात है। वोट भी अब कहीं पर न निष्पक्ष है है कहीं धर्म

आरती तिवारी की कविताएँ

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आरती तिवारी सृष्टि का अहम् हिस्सा होते हुए भी औरत इस पितृसत्तात्मक समाज में प्रायः उपेक्षा की शिकार रही है । एक जमाने से उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है । इसीलिए औरत को शूद्रों में भी शूद्र कहा जाता है कि चाहें जो भी समाज हो वह औरतों के साथ जुल्म और अन्याय के साथ-साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करता रहा है । लेकिन धीरे-धीरे ही सही परिदृश्य बदलने की शुरुआत हो रही है. आज के समय में अनेक महिला रचनाकार हैं जिन्होंने स्त्री समाज की दिक्कतों, उपेक्षाओं और दुखों को अपनी रचनाओं में ज्यों का त्यों उभारने की कोशिश की है । इसी क्रम में आज प्रस्तुत है मंदसौर जैसे दूरदराज क्षेत्र की आरती तिवारी की कविताएँ ।       आरती रविन्द्र तिवारी की कविताएँ   औरत (1) बेबसी की चादरें हटाए औरत बेवजह आँसू न बहाए औरत।। खुद पे यकीं रख भिड़ जाए जमाने से तो ,   आँसू पी के न कसमसाए औरत।। हिम्मत से लबरेज हैं , टटोले खुद को , किसी कदम पे , कभी भी न डगमगाए औरत।। क्यूं जल जाती हैं , चुपचाप जुल्म सहते हुए , खुद को पहचाने, तूफानो से टकराए औरत।। जहालत , कहालत , ग

विमल चन्द्र पाण्डेय की कहानी 'पर्स'

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विमल चन्द्र पाण्डेय युवा कथाकार विमल चन्द्र पाण्डेय की एक कहानी 'पर्स' अनहद-5 में प्रकाशित हुई है. इस कहानी की पाठकों के बीच अच्छी-खासी चर्चा हो रही है. हमेशा की तरह विमल ने ऐसे कथ्यों के सहारे कहानी की बुनावट की है जो रोचक होने के साथ-साथ प्रासंगिक और यथार्थ भी है. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारा चौकन्नापन कुछ इस तरह का है जिसमें बहुत कुछ खोता जा रहा है. ओवर कांससनेस का आलम यह होता है कि हम उस खोने या छूटने का एहसास तक नहीं कर पाते. तो आइए पढ़ते हैं विमल की बिल्कुल नयी कहानी 'पर्स'.                 विमल चन्द्र पाण्डेय पर्स (जिस चीज़ का वजन कम हो तो उसकी गति अधिक होती है) अपनी जानकारी में मैं दुनिया का सबसे चौकन्ना इंसान हूं। आप इस बात की तस्दीक मेरे मुहल्ले या ऑफिस के किसी भी आदमी से कर सकते हैं और मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि कौन सा आदमी मेरे चौकन्नेपन के बारे में बताने के लिये कौन सा उदाहरण देगा। यह भी मेरे चौकन्नेपन का एक नमूना है। वैसे तो मैं आपको इस बात के दसियों उदाहरण दे कर साबित कर सकता हूं , घर परिवार के , दफ्तर के , सेहत क