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मीता दास की कविताएँ

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मीता दास राष्ट्रवाद के मसले को ले कर गांधीजी और रवींद्र नाथ टैगोर के विचार बिलकुल अलग-अलग थे। दोनों की अपनी अपनी संकल्पनाएँ थीं। जालियांवाला बाग़ हत्याकांड मुद्दे पर आक्रोश जताते हुए रवींद्र नाथ ने अपनी नाईटहुड की उपाधि लौटा दी थी। देशभक्ति कैसे फासीवाद और नाजीवाद का रूप ले लेती है इसे देखना हो तो मुसोलिनी और हिटलर के इतिहास को देखा-पढ़ा जा सकता है जो अंततः समूचे विश्व शांति के लिए खतरा बन गया। अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर देशभक्ति और देशद्रोह को ले कर लम्बी बहसें चलीं और उठापटक हुई। इन दोनों के बीच एक विभाजक रेखा कहाँ और कैसे खींची जाए यह सवाल आज भी ज्यों का त्यों है। अपने अधिकारों को ले कर संघर्ष कर रहे लोग कभी भी देश द्रोही नहीं हो सकते। मीता दास अपनी एक कविता में इस मुद्दे से दो-चार होते हुए कुछ प्रश्न ही खडी करती हैं। मीता ने नवारुण भट्टाचार्य की कविताओं का बेहतरीन अनुवाद कर अपने को साबित किया है। उनकी कविताओं पर नवारुण का प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। तो आइए आज पढ़ते हैं मीता दास की कुछ नयी कविताएँ।         मीता दास की कविताएँ " फिलिस्तीनी कवित