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हरबंस मुखिया की नज्में

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हरबंस मुखिया हरबंस मुखिया का जन्म 1939 में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कालेज से इन्होने 1958 में   बी. ए. किया । जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से 1969 में अपना शोध कार्य पूरा किया । देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नयी दिल्ली के ‘ सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज ’ में मध्यकालीन इतिहास के प्रोफ़ेसर रहे । सन 2004 में सेवानिवृति के पश्चात मुखिया जी अध्ययन कार्यों में लगातार लगे हुए हैं ।   इनकी कुछ प्रख्यात कृतियाँ हैं Mughals of India (Peoples of Asia), Perspectives on Medieval History, Historians and Historiography During the Reign of Akbar, Issues in Indian History, Politics and Society, Exploring India’s Medieval Centuries: Essays in History, Society, Culture and Technology. इसके   अतिरिक्त इतिहास की कुछ   महत्वपूर्ण पुस्तकों का मुखिया जी ने सम्पादन   भी किया है जिसमें Feudalism and Non-European Socieites (Special issue of the Journal of Peasant Studies , 12) T. J. Byres, Harbans Mukhia (Editor), Religi

विजय गौड़ की कहानी - ‘मासिक प्रीमियम’.

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विजय गौड़ विजय गौड़ कवि और आलोचक होने के साथ-साथ एक बेहतर कहानीकार भी हैं. अपनी नयी कहानी ‘मासिक प्रीमियम’ में विजय ने मदान दम्पत्ति के माध्यम से आज के बाजारवादी समय की उन चालाकियों को उभारने का सफल प्रयास किया है, जो अपनों को भी उस जाल में फांसने से नहीं चूकती. जिसमें अपने स्वार्थों के आगे सब गौंण हो जाता है. और यह सब कहानी में एक ऐसे घटनाक्रम के तहत हो रहा है जो बिल्कुल स्वाभाविक लग रहा है. एक कहानीकार की यही तो सफलता होती है कि उसके द्वारा रची गयी किस्सागोई एकदम हकीकत सरीखी लगने लगे. आइए आज पढ़ते हैं विजय गौड़ की इसी भाव-भूमि पर आधारित कहानी ‘मासिक प्रीमियम’.          मासिक प्रीमियम विजय गौड़ पति-पत्नी दोनों बेहद खुश थे। मौका भी खुशी का ही था। वैसे खुश रहने के लिए मदान फैमली को मौकों की जरूरत नहीं थी। पिछले कुछ सालों से तो जैसे खुशी की नदी ही उनके जीवन में सतत प्रवाहमान थी। यह कहना ठीक नहीं कि यदा कदा के समय अंतरालों में हो जाने वाले बाजारू उतार पर नदी सूख जाती थी। बहुत तथ्यात्मक और घटनाक्रम के ऐतिहासिक हवाले के साथ बात करने वालों को तो निशा मदान मुँह त