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स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ

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स्वप्निल श्रीवास्तव आज का हमारा समय ‘अमूर्त समय’ है. अब सब कुछ लगभग अमूर्त सा है. दुश्मन-दोस्त, रिश्ते-नाते आज सब लगभग अमूर्त हो गए हैं. यह अमूर्तन इतना अधिक अस्पष्ट है कि कब और कहाँ हम धोखा खा जाएँ, कहा नहीं जा सकता. मदारी हमें अच्छे दिन का स्वप्न दिखा कर हमारी बची-खुची खुशियाँ गायब कर सकता है. कहने के लिए हम लोकतान्त्रिक देश के नागरिक हैं लेकिन वास्तविकता से जब पाला पड़ता है तो इसके खौफनाक चेहरे सामने आ जाते हैं. वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने इन अमूर्त-विसंगतियों को अपनी कविता का विषय बनाया है. यह स्वप्निल जैसे कवि के बस की ही बात है कि हमारे समय की जटिलता को साफगोई से अपनी कविता में उद्घाटित कर देते हैं. तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव की कुछ नयी कविताएँ.  स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ बूढ़ा चित्रकार और लड़की एक बूढ़े चित्रकार की जिंदगी   में शरीक   होने के   बाद ,   मशहूर   हो गयी थी वह लड़की वरना   उसे कौन जानता था वह ठीक से कूंची नहीं पकड पाती थी आज वह रंगों से खेल रही है चित्रकार के आंखों में जो चमक